Sunday, May 24, 2015
मातृ भूमि के लिए, जगत में, जीना और मरणा होगा...
Saturday, May 16, 2015
रात सिर्फ हमारी होगी
चाहे जो जो ले ले,
रात सिर्फ हमारी होगी,
बहुत सुने गैरों की
हे - प्रिये, अब तो,
बात सिर्फ हमारी होगी,
मानती हु,
आप चाँद हो,
दुनिया में
आपकी राज हैं,
पर मेरी और भी
तनिक देखिये,
की खुबसूरत शाम
और मदमस्त मिजाज हैं,
न सिर्फ रूहों में
बल्कि जिस्मो पर भी,
सुरुवात शिर्फ़ हमारी होगी,
दिन आपका
चाहे जो जो ले ले ,
रात शिर्फ़ हमारी होगी ....
Thursday, May 7, 2015
निल गगन के पंछी
तेरी सांसो का भीकुछ खुमार था,
Tuesday, May 5, 2015
बार-बार हर बार हमे इलज़ाम देने वाले......
Monday, May 4, 2015
जलाऊ मैं दीपक
Monday, April 27, 2015
प्रिये सुनो अब मेरी बानी
प्रिये सुनो.......
प्रिये सुनो अब मेरी बानी,
तेरे दरश की एक दीवानी
तेरे मिलन की एक प्यासी
ना मै मीरा,
ना मै राधा,
जल-विहार को जाती थी,
जब कोई धुन बनाती थी,
ताल-तलैया ता-ता-थैया,
गाकर तुम्हे सुनाती थी,
कदम्ब जो था यमुना के तीरे,
उसपे चढ़ के शाम-सवेरे,
मेरे गीत तेरे होंठो से,
छेड़े जो मुरली धीरे-धीरे,
आया याद, कुछ और बताऊ,
कि बिसरी यादो को चितराउ,
ये प्रीत.......
ये प्रीत वही है, नई जवानी,
तेरे दरश की एक दीवानी,
तेरे मिलन की एक प्यासी,
ना मै मीरा,
ना मै राधा,
योगी हो की भोगी हो,
या वैराग की रोगी हो,
मेरे हो तुम, हे प्रिये...
अब चाहे तुम, जो भी हो,
छलिया हो, छलती हु,
शिर्फ़ तेरे लिए ही गलती हु,
दुनिया तुम्हे जो भी कहे,
मै तो, बस इतना ही कहती हु,
क्या अपनों, क्या गैरो के,
तुम हो राजा चोरो के,
की हा....
की हा मै हु, एक रूप-की-रानी,
तेरे दरश की एक दीवानी
तेरे मिलन की एक प्यासी
ना मै मीरा,
ना मै राधा,
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सु-प्रभात-नमन
Wednesday, April 22, 2015
हाँ तुम्हे खोये नही है हम !
जागते तो
वो हैं
जो सोते हैं
बरसो से
सोये नही हैं हम
हाँ, हाँ तुम्हे
खोये नही है हम !
मुंद जाये
पलकें तो क्या
निश्चेत हो जाये
जिस्म तो क्या
गिरी हो जो
लौकिक अश्रुधार
किन्तु कभी
रोये नही है हम
हाँ, हाँ तुम्हे
खोये नही है हम !
मुझमे जो
तुम हो समाहित
की रोम रोम में
जो तुम हो आभासित
की मिले जो
अवांछित फल
वो बृक्ष
बोए नही हैं हम
हां हाँ तुम्हे
खोये नही हैं हम !
---- हीजना सुमैया
Thursday, April 16, 2015
तोहरे आँगन में
हे प्रिये ……
बरश रहा
सब तृप्त हुवे
जान पड़ते हैं
सबकी भिन्न नगर
किन्तु क्यू सब
यही पर
आन पड़ते है
क्यों होती हु बेकाबू
जानते हो जादू
रूठे हुवे
भाग्य भी
मान पड़ते हैं
बरस रहा
तुम्हारे आँगन
सब तृप्त हुवे
जान पड़ते हैं
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---- हीजना सुमैया
Monday, April 13, 2015
कृपा कर, जोगन आरती गाये रही हैं
ज्योति अलौकिक तीनों
लोक में छाये रही हैं
प्रेम पुजारिन फिर भी
दीप जलाये रही हैं
गोकुल से राधा को
बरसाने से
बुलाये रही हैं
कृपा कर जोगन
आरती गाये रही हैं
सांज ढले तक
सेवा कौन
इतने महमारो
वो वस्त्र ओढ़ाए
वो भोग लगाये
वो लागत प्यारों
आपकी ओर
की आप हमारी
ओर निहारो
हमारे धाम को
जानी वृन्दावन
धाम पधारों
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जय श्री राम
Saturday, April 11, 2015
तुम्हारें दर्शन की अभिलाषी
हे प्रिये...
तुमने मुझे सदैव, परीक्षक की आंखों से देखा है!
प्रेम की नहीं,
क्या तुम, इतना भी नहीं जान पाए?
नारी परीक्षा नहीं, प्रेम चाहती है,
परीक्षा गुणों को भी अवगुण,
सुन्दर को भी असुन्दर बना देती है,
जबकि प्रेम!
अवगुणों को भी गुण,असुन्दर को भी सुन्दर
मैंने तुमसे प्यार किया है,
मै सोच भी नहीं पाती कि, तुम में कोई बुराई भी है!
किन्तु तुमने मेरी परीक्षा ली, और मुझे अस्थिर, चंचल और
जाने क्या क्या समझकर, मुझसे दूर भागते रहे
नहीं !
मै जो कुछ हूं, वो मुझे कह लेने दो,
मैं क्यों अस्थिर और चंचल हूं,
क्योिंक मुझे, वो प्यार ही नहीं मिला,
जो मुझे स्थिर और अचंचल बनाते
मेरे सामने उसी तरह, समर्पण किया होता
जैसे मैंने, तुम्हें किया है,
तो आज मुझपे ये आक्षेप ना लगाते
...... सिर्फ तुम्हारी
तुम्हारें दर्शन की अभिलाषी
----- कृति : हीजना सुमैया
Monday, April 6, 2015
मेरो ऐसो भाग्य कहां जो में कान्हा को पाऊं
मारो,
ऐसो भाग्य कहां
कि कान्हा तुम्हें पाऊं
कान्हा तुम्हें पाऊं
कि तुमरे मन को भाऊं
छोड़ आई जो गलियां
बाबुल की, फिर, फिर से
वहां किस मुंह जाऊं
वहां किस मुंह जाऊं
कि किसे अपनी व्यथा सुनाऊं
पा जाऊं तुम्हें मीरा जैसी
हे प्रिये! तुम्हीं कहो
ऐसा कौन रूप बनाऊं
ऐसा कौन रूप बनाऊं
कि कैसे तुम्हें मनाऊं
मेरो ऐसो भाग्य कहां
कि कान्हा तुमको पाऊं
कान्हा तुमको पाऊं
कि तुमरे मन को भाऊं
गीत मेरी हो गाई हुई
और तेरी हो बंशी-धुन
हो जाऐ मिलके एक
ऐसे किस सुर में गाऊं
ऐसे किस सुर में गाऊं
कि कैसे पांव थिरकाऊं
भितर जगी जो प्यास
जन्मों की
तेरे मिलन को पिया
उसे किस भांति मिटाऊं
उसे किस भांति मिटाऊं
कि क्या क्या तुम्हे बताऊं
मेरो ऐसो भाग्य कहां
जो में कान्हा को पाऊं
---- Heejna Sumaiya
सच सच कहना, क्यों पीछे पड़े हो तुम
फिर इस दिल में क्यों घुसे पड़े हो तुम
सच सच कहना, क्यों पीछे पड़े हो तुम
कि कर लिया दिदार तुम्हारा
किन्तु ये तो इंसाफ नहीं है
कि लगा दो, ला-इलाज बीमारी
एक ना एक दिन तो बेल भी होती है।
तो भला, आंख मींचे क्यों खड़े हो तुम
सच सच कहना, क्यों पीछे पड़े हो तुम
क्या मैं भी रहने आ जाऊं,
या बरस रही जो प्रेम-रस की धारा,
क्या मैं भी उसमें नहा जाऊं,
क्योंकि तुम्हारे लिए राग-द्वेष एक खेल ही होता है
और इस खेल में, बहुत बड़े हो तुम
फिर ! सच सच कहना, क्यों पीछे पड़े हो तुम
शोर न मचाना
कि हौले से आना
यहां शोर न मचाना
यहां भी दिल,
दिलों के मिलने से
खुशियां किसी को,
किसी के गिरने सेे
कि यूं ना हमें सताना
यहां शोर न मचाना
हम-तुम कभी तो
लोग जश्न मनाएंगे
पर! गली गली बस,
यही किस्सा दोहराएंगे
कि फिर कभी न जाना
बस! यहां शोर न मचाना
इंतजार
कि देखते हैं कब आते हो,
थिरक रहे जो पांव, नाचने को,
कि देखते हैं कब नचाते हो?
जो किया था तुमने वादा,
कि राधा है कृष्ण और कृष्ण हैं राधा,
अपनी ही कही बातों को,
कि कब तलक निभाते हो?
है तुम्हारा इंतजार,
कि देखते हैं कब आते हो?
कि जिसके लिए झेली हूं,
कितने अपमान और गाली,
कि करने को तृप्त आत्मा को,
बंशी कब बजाते हो?
थिरक रहे जो पांव,
कि देखते हैं कब नचाते हो...?
उन्हीं की यादों में
खोये रहते है पल-पल
महसुस करते हैं आजकल
तो छिपाना चाहते हैं खुद को
तो दीखाना चाहते हैं उनको
धड़कता है धक-धक
महसुस करते हैं आजकल
वो है मेरा पिया
जो सबके चुराते जिया
समाये रहते हैं हर पल
महसुस करते हैं आजकल