Thursday, May 7, 2015

निल गगन के पंछी


हम पंछी 
उन्मुक्त गगन के
पिंजर बंद नही
रह पाएंगे,

कनक तीलियों से
टकरा कर
पुलकित पंख
टूट जायेंगे,

हम बहता जल
पीने वाले
मर जायेंगे
भूखे प्यासे

कही भली है
कटुक-निबोरी,
कनक_कटोरी_की
मैदा से,

स्वर्ण शृंखला
के बंधन में
अपनी गति
उड़ान सब भूले,

बस सपनो में
देख रहे है
तरु की फूंगि
पर के झूले,

ऐसे थे की
अरमान उड़ते
निल गगन की
सीमा पाने,

लाल किरण सी
चोच खोल
चुगते तरक
अनार के दाने,

होती सीमा
हिन् शितिज से
इन पंखो की
होड़ा होड़ी,

या तोह शितिज
मिलन बन जाता
या तनती
साँसों की दूरी,

नीड़ ना दो,
नीड़ ना दो,

चाहे टहनी
का यह आश्रय
छिन्न भिन्न
कर डालो,

लेकिन पंख
दिए हैं तो
आकुल उडान में
विघ्न ना डालो

कि आकुल उड़ान में 
विघ्न ना डालो........

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