Thursday, April 16, 2015

तोहरे आँगन में


तोहरे आँगन में
हे प्रिये …… 
आज क्या
बरश रहा  
जिसमे भीग कर
सब तृप्त हुवे
जान पड़ते हैं 
सबकी भिन्न डगर
सबकी भिन्न नगर 
जाने को तो था
किन्तु क्यू सब
यही पर
आन पड़ते है 
देखते ही तुम्हे
क्यों होती हु बेकाबू 
ऐसी कौन सी तुम
जानते हो जादू 
की वर्षो से
रूठे हुवे
भाग्य भी
मान पड़ते हैं 
आज क्या
बरस रहा
तुम्हारे आँगन 
जिसमे भीग कर 
सब तृप्त हुवे 
जान पड़ते हैं 
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---- हीजना सुमैया 

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