तोहरे आँगन में
हे प्रिये ……
हे प्रिये ……
आज क्या
बरश रहा
बरश रहा
जिसमे भीग कर
सब तृप्त हुवे
जान पड़ते हैं
सब तृप्त हुवे
जान पड़ते हैं
सबकी भिन्न डगर
सबकी भिन्न नगर
सबकी भिन्न नगर
जाने को तो था
किन्तु क्यू सब
यही पर
आन पड़ते है
किन्तु क्यू सब
यही पर
आन पड़ते है
देखते ही तुम्हे
क्यों होती हु बेकाबू
क्यों होती हु बेकाबू
ऐसी कौन सी तुम
जानते हो जादू
जानते हो जादू
की वर्षो से
रूठे हुवे
भाग्य भी
मान पड़ते हैं
रूठे हुवे
भाग्य भी
मान पड़ते हैं
आज क्या
बरस रहा
तुम्हारे आँगन
बरस रहा
तुम्हारे आँगन
जिसमे भीग कर
सब तृप्त हुवे
जान पड़ते हैं
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---- हीजना सुमैया
सब तृप्त हुवे
जान पड़ते हैं
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:
---- हीजना सुमैया
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