Monday, April 27, 2015

प्रिये सुनो अब मेरी बानी


प्रिये सुनो.......
प्रिये सुनो अब मेरी बानी,

तेरे दरश की एक दीवानी
तेरे मिलन की एक प्यासी

ना मै मीरा,
ना मै राधा,

जल-विहार को जाती थी,
जब कोई धुन बनाती थी,
ताल-तलैया ता-ता-थैया,
गाकर तुम्हे सुनाती थी,

कदम्ब जो था यमुना के तीरे,
उसपे चढ़ के शाम-सवेरे,
मेरे गीत तेरे होंठो से,
छेड़े जो मुरली धीरे-धीरे,

आया याद, कुछ और बताऊ,
कि बिसरी यादो को चितराउ,

ये प्रीत.......
ये प्रीत वही है, नई जवानी,

तेरे दरश की एक दीवानी,
तेरे मिलन की एक प्यासी,

ना मै मीरा,
ना मै राधा,

योगी हो की भोगी हो,
या वैराग की रोगी हो,
मेरे हो तुम, हे प्रिये...
अब चाहे तुम, जो भी हो,

छलिया हो, छलती हु,
शिर्फ़ तेरे लिए ही गलती हु,
दुनिया तुम्हे जो भी कहे,
मै तो, बस इतना ही कहती हु,

क्या अपनों, क्या गैरो के,
तुम हो राजा चोरो के,

की हा....
की हा मै हु, एक रूप-की-रानी,

तेरे दरश की एक दीवानी
तेरे मिलन की एक प्यासी

ना मै मीरा,
ना मै राधा,
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सु-प्रभात-नमन

Wednesday, April 22, 2015

हाँ तुम्हे खोये नही है हम !


जागते तो
वो हैं 
जो सोते हैं
बरसो से
सोये नही हैं हम
हाँ,  हाँ तुम्हे
खोये नही है हम !

मुंद जाये
पलकें तो क्या
निश्चेत हो जाये
जिस्म तो क्या
गिरी हो जो
लौकिक अश्रुधार
किन्तु कभी
रोये नही है हम
हाँ,  हाँ तुम्हे
खोये नही है हम !


मुझमे जो
तुम हो समाहित
की रोम रोम में
जो तुम हो आभासित
की मिले जो
अवांछित फल
वो बृक्ष
बोए नही हैं हम
हां हाँ तुम्हे
खोये नही हैं हम !

---- हीजना सुमैया 

Thursday, April 16, 2015

तोहरे आँगन में


तोहरे आँगन में
हे प्रिये …… 
आज क्या
बरश रहा  
जिसमे भीग कर
सब तृप्त हुवे
जान पड़ते हैं 
सबकी भिन्न डगर
सबकी भिन्न नगर 
जाने को तो था
किन्तु क्यू सब
यही पर
आन पड़ते है 
देखते ही तुम्हे
क्यों होती हु बेकाबू 
ऐसी कौन सी तुम
जानते हो जादू 
की वर्षो से
रूठे हुवे
भाग्य भी
मान पड़ते हैं 
आज क्या
बरस रहा
तुम्हारे आँगन 
जिसमे भीग कर 
सब तृप्त हुवे 
जान पड़ते हैं 
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---- हीजना सुमैया 

Monday, April 13, 2015

कृपा कर, जोगन आरती गाये रही हैं


राधे कृष्णा की
ज्योति अलौकिक तीनों
लोक में छाये रही हैं 
भक्ति विवश एक 
प्रेम पुजारिन फिर भी
दीप जलाये रही हैं 
कृष्णा को
गोकुल से राधा को
बरसाने से
बुलाये रही हैं 
दोनों करो स्वीकार
कृपा कर जोगन
आरती गाये रही हैं 
भोर भये ती 
सांज ढले तक
सेवा कौन
इतने महमारो 
स्नान कराये 
वो वस्त्र ओढ़ाए
वो भोग लगाये
वो लागत प्यारों 
कबसे निहारत
आपकी ओर
की आप हमारी
ओर निहारो 
राधे कृष्णा
हमारे धाम को
जानी वृन्दावन
धाम पधारों
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जय श्री राम
---- हीजना सुमैया 

Saturday, April 11, 2015

तुम्हारें दर्शन की अभिलाषी


हे प्रिये...
तुमने मुझे सदैव, परीक्षक की आंखों से देखा है!
प्रेम की नहीं,

क्या तुम, इतना भी नहीं जान पाए?
नारी परीक्षा नहीं, प्रेम चाहती है,

परीक्षा गुणों को भी अवगुण,
सुन्दर को भी असुन्दर बना देती है,

जबकि प्रेम!
अवगुणों को भी गुण,असुन्दर को भी सुन्दर

मैंने तुमसे प्यार किया है,
मै सोच भी नहीं पाती कि, तुम में कोई बुराई भी है!

किन्तु तुमने मेरी परीक्षा ली, और मुझे अस्थिर, चंचल और
जाने क्या क्या समझकर, मुझसे दूर भागते रहे

नहीं !
मै जो कुछ हूं, वो मुझे कह लेने दो,

मैं क्यों अस्थिर और चंचल हूं,
क्योिंक मुझे, वो प्यार ही नहीं मिला,
जो मुझे स्थिर और अचंचल बनाते

मेरे सामने उसी तरह, समर्पण किया होता
जैसे मैंने, तुम्हें किया है,
तो आज मुझपे ये आक्षेप ना लगाते

...... सिर्फ तुम्हारी
तुम्हारें दर्शन की अभिलाषी

----- कृति : हीजना सुमैया

Monday, April 6, 2015

मेरो ऐसो भाग्य कहां जो में कान्हा को पाऊं



मारो, 
ऐसो भाग्य कहां
कि कान्हा तुम्हें पाऊं
कान्हा तुम्हें पाऊं
कि तुमरे मन को भाऊं

छोड़ आई जो गलियां
बाबुल की, फिर, फिर से
वहां किस मुंह जाऊं
वहां किस मुंह जाऊं
कि किसे अपनी व्यथा सुनाऊं

पा जाऊं तुम्हें मीरा जैसी
हे प्रिये! तुम्हीं कहो
ऐसा कौन रूप बनाऊं
ऐसा कौन रूप बनाऊं
कि कैसे तुम्हें मनाऊं

मेरो ऐसो भाग्य कहां
कि कान्हा तुमको पाऊं
कान्हा तुमको पाऊं
कि तुमरे मन को भाऊं

गीत मेरी हो गाई हुई
और तेरी हो बंशी-धुन
हो जाऐ मिलके एक
ऐसे किस सुर में गाऊं
ऐसे किस सुर में गाऊं
कि कैसे पांव थिरकाऊं

भितर जगी जो प्यास
जन्मों की
तेरे मिलन को पिया
उसे किस भांति मिटाऊं
उसे किस भांति मिटाऊं
कि क्या क्या तुम्हे बताऊं
मेरो ऐसो भाग्य कहां
जो में कान्हा को पाऊं

---- Heejna Sumaiya

सच सच कहना, क्यों पीछे पड़े हो तुम



चोर हो तुम, चोरों की जगह तो जेल होती है
फिर इस दिल में क्यों घुसे पड़े हो तुम
सच सच कहना, क्यों पीछे पड़े हो तुम
बस इतनी ही तो खता हुई,
कि कर लिया दिदार तुम्हारा
किन्तु ये तो इंसाफ नहीं है
कि लगा दो, ला-इलाज बीमारी
तुम्हारा क्या !
एक ना एक दिन तो बेल भी होती है।
तो भला, आंख मींचे क्यों खड़े हो तुम
सच सच कहना, क्यों पीछे पड़े हो तुम
इश्क के आंगन में तेरे,
क्या मैं भी रहने आ जाऊं,
या बरस रही जो प्रेम-रस की धारा,
क्या मैं भी उसमें नहा जाऊं,
डरती हूं तुमसे
क्योंकि तुम्हारे लिए राग-द्वेष एक खेल ही होता है
और इस खेल में, बहुत बड़े हो तुम
फिर ! सच सच कहना, क्यों पीछे पड़े हो तुम
---- हीजना सुमैया

शोर न मचाना



धीरे से आना प्रिये,
कि हौले से आना
दिलवालों की बस्ती है,
यहां शोर न मचाना
कि जलते है,
यहां भी दिल,
दिलों के मिलने से
कि मिलती हैं,
खुशियां किसी को,
किसी के गिरने सेे
ना!
यूं दूर ना जाना प्रिये,
कि यूं ना हमें सताना
दिलवालों की बस्ती है,
यहां शोर न मचाना
जो बिछड़ जाएं,
हम-तुम कभी तो
लोग जश्‍न मनाएंगे
कुछ दिन ही सही,
पर! गली गली बस,
यही किस्सा दोहराएंगे
अबकी जो आना प्रिये,
कि फिर कभी न जाना
दिलवालों की बस्ती है,
बस! यहां शोर न मचाना
---- Heejna Sumaiya

इंतजार



है तुम्हारा इंतजार,
कि देखते हैं कब आते हो,
थिरक रहे जो पांव, नाचने को,
कि देखते हैं कब नचाते हो?
तुझ में मैं हूं, मुझ में तू हैै,
जो किया था तुमने वादा,
कि राधा है कृष्ण और कृष्ण हैं राधा,
अपनी ही कही बातों को,
कि कब तलक निभाते हो?
है तुम्हारा इंतजार,
कि देखते हैं कब आते हो?
भीतर जो जगाए हो, प्यास न बुझने वाली,
कि जिसके लिए झेली हूं,
कितने अपमान और गाली,
कि करने को तृप्त आत्मा को,
बंशी कब बजाते हो?
थिरक रहे जो पांव,
कि देखते हैं कब नचाते हो...?
---- Heejna_sumaiya

उन्हीं की यादों में



उन्हीं की यादों में
खोये रहते है पल-पल
बड़ा अजीब और अकेला
महसुस करते हैं आजकल
जो दिख जाऐं कहीं वो
तो छिपाना चाहते हैं खुद को
और ना हो दीदार
तो दीखाना चाहते हैं उनको
की सिने में दिल अनायास ही
धड़कता है धक-धक
बड़ा अजीब और अकेला
महसुस करते हैं आजकल
प्रिय, प्रियतम, प्राणप्रिय
वो है मेरा पिया
कि माखन के साथ-साथ
जो सबके चुराते जिया
वोही, की सिर्फ वोही इस दिल में
समाये रहते हैं हर पल
बड़ा अजीब और अकेला
महसुस करते हैं आजकल
---- हीजना सुमैया