प्रिये सुनो.......
प्रिये सुनो अब मेरी बानी,
तेरे दरश की एक दीवानी
तेरे मिलन की एक प्यासी
ना मै मीरा,
ना मै राधा,
जल-विहार को जाती थी,
जब कोई धुन बनाती थी,
ताल-तलैया ता-ता-थैया,
गाकर तुम्हे सुनाती थी,
कदम्ब जो था यमुना के तीरे,
उसपे चढ़ के शाम-सवेरे,
मेरे गीत तेरे होंठो से,
छेड़े जो मुरली धीरे-धीरे,
आया याद, कुछ और बताऊ,
कि बिसरी यादो को चितराउ,
ये प्रीत.......
ये प्रीत वही है, नई जवानी,
तेरे दरश की एक दीवानी,
तेरे मिलन की एक प्यासी,
ना मै मीरा,
ना मै राधा,
योगी हो की भोगी हो,
या वैराग की रोगी हो,
मेरे हो तुम, हे प्रिये...
अब चाहे तुम, जो भी हो,
छलिया हो, छलती हु,
शिर्फ़ तेरे लिए ही गलती हु,
दुनिया तुम्हे जो भी कहे,
मै तो, बस इतना ही कहती हु,
क्या अपनों, क्या गैरो के,
तुम हो राजा चोरो के,
की हा....
की हा मै हु, एक रूप-की-रानी,
तेरे दरश की एक दीवानी
तेरे मिलन की एक प्यासी
ना मै मीरा,
ना मै राधा,
:
:
:
:
:
:
सु-प्रभात-नमन