Sunday, May 24, 2015

मातृ भूमि  के लिए, जगत में, जीना और मरणा होगा...

शांति समर में,
कभी भूलकर भी,
धैर्य नहीं खोना होगा,

वज्र प्रहार,
भले, सिर पर हो,
तुझे नहीं रोना होगा,

औरो से बदला,
लेने को, मन में,
बीज नहीं बोना होगा,

घर में कण,
टूल देकर, फिर
तुझे नहीं सोना होगा,

देश दाग की,
रुधिर वारी से,
हर्षित हो धोना होगा,

देश कार्य की,
सारी गठरी,
सर पर रख ढोना होगा,

आँखे लाल,
भौंवे टेढ़ी कर,
क्रोध नहीं करना होगा,

बली वेदी पर,
तुझे हर्ष से,
चढ़कर कट मरना होगा,

नश्वर है,
नर देह, मौत से,
कभी नहीं डरना होगा,

सत्य मार्ग को,
छोड़, स्वार्थ पथ पर,
पैर नहीं धरना होगा,

होगी निश्चय
जीत, धर्म की,
यही भाव भरना होगा,

मातृ भूमि 
के लिए, जगत में,
जीना और मरणा होगा,
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‪#‎जय_हिन्द
‪#‎जय_श्री_राम
‪#‎वंदे_मातरम्

Saturday, May 16, 2015

रात सिर्फ हमारी होगी



दिन आपका
चाहे जो जो ले ले,
रात सिर्फ हमारी होगी,

बहुत सुने गैरों की 
हे - प्रिये, अब तो,
बात सिर्फ हमारी होगी, 

मानती हु,
आप चाँद हो, 
दुनिया में
आपकी राज हैं, 

पर मेरी और भी
तनिक देखिये,
की खुबसूरत शाम 
और मदमस्त मिजाज हैं,

न सिर्फ रूहों में 
बल्कि जिस्मो पर भी,
सुरुवात शिर्फ़ हमारी होगी,

दिन आपका
चाहे जो जो ले ले ,
रात शिर्फ़ हमारी होगी ....

Thursday, May 7, 2015

निल गगन के पंछी


हम पंछी 
उन्मुक्त गगन के
पिंजर बंद नही
रह पाएंगे,

कनक तीलियों से
टकरा कर
पुलकित पंख
टूट जायेंगे,

हम बहता जल
पीने वाले
मर जायेंगे
भूखे प्यासे

कही भली है
कटुक-निबोरी,
कनक_कटोरी_की
मैदा से,

स्वर्ण शृंखला
के बंधन में
अपनी गति
उड़ान सब भूले,

बस सपनो में
देख रहे है
तरु की फूंगि
पर के झूले,

ऐसे थे की
अरमान उड़ते
निल गगन की
सीमा पाने,

लाल किरण सी
चोच खोल
चुगते तरक
अनार के दाने,

होती सीमा
हिन् शितिज से
इन पंखो की
होड़ा होड़ी,

या तोह शितिज
मिलन बन जाता
या तनती
साँसों की दूरी,

नीड़ ना दो,
नीड़ ना दो,

चाहे टहनी
का यह आश्रय
छिन्न भिन्न
कर डालो,

लेकिन पंख
दिए हैं तो
आकुल उडान में
विघ्न ना डालो

कि आकुल उड़ान में 
विघ्न ना डालो........

तेरी सांसो का भीकुछ खुमार था,


वो जो तुम में
हम में करार था,

तेरी सांसो का भी
कुछ खुमार था,

सिर्फ तुम ही न थे :
वहां मैं भी थी ;

याद आती हैं मुझे,
तेरे सिने में
टूट कर खोना,

सांसे मांगती हैं तुझे,
तेरे बाँहो की
वोही गर्म कोना,

कि वो जो रातो का
हर पल इन्तज़ार था,

रोम रोम में भरी
बस तेरे लिए प्यार था,

सिर्फ तुम्ही न थे :
वहां मैं भी थी ;

गीत गाती हु प्रिये,
की धुन कोई
बना तो ना दो,

मित पाती हूँ प्रिये,
जिस तरह तुम्हे
तुम भी तो कहो,

कि वो जो जवानी का
मधुर रफ़्तार था,

दीवानगी को बेबस
दिल मेरा हर बार था,

सिर्फ तुम्ही न थे :
वहां मैं भी थी ;
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.........हीजना_सुमैया

Tuesday, May 5, 2015

बार-बार हर बार हमे इलज़ाम देने वाले......


वो जो
दिख जाते हो
कभी खिड़की से,

वो जो
आँखों में
भरे वही मुस्कान,

की तेरी
चौड़ी छाती
जैसे वीरो की,

की तेरी
भोली शक्ल
जैसे हीरो की,

बार-बार हर बार
हमे इलज़ाम देने वाले......

क्या तुम
कम जुल्म ढाते हो,
जो चैन के साथ-साथ
मेरी नींद भी चुरा ले
जाते हो............
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#मेरे_माखनचोर

Monday, May 4, 2015

जलाऊ मैं दीपक


जब भी,
जलाऊ मैं दीपक
जाने क्यों...............

बाती के बदले
मैं जलती हुँ,

तेल के बदले 
मैं गलती हुँ ;

तुम हमारे प्रिये हो,
तुमसे मेरा वज़ूद है,

रहुँ तुम्हारे बाहों तले,
फिर तो कांटे भी कुबूल है,

अभी नही हो
साथ मेरे पर
कभी तो होंगे.........

गिर के भी मैं
हर बार संभलती हुँ,

पतझड़ के बाद भी
फूलती और फलती हुँ,

जब भी,
जलाऊ मैं दीपक
जाने क्यूँ..............

बाती के बदले
मैं जलती हुँ,

तेल के बदले
मैं गलती हुँ;
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# मेरे_माखनचोर

Monday, April 27, 2015

प्रिये सुनो अब मेरी बानी


प्रिये सुनो.......
प्रिये सुनो अब मेरी बानी,

तेरे दरश की एक दीवानी
तेरे मिलन की एक प्यासी

ना मै मीरा,
ना मै राधा,

जल-विहार को जाती थी,
जब कोई धुन बनाती थी,
ताल-तलैया ता-ता-थैया,
गाकर तुम्हे सुनाती थी,

कदम्ब जो था यमुना के तीरे,
उसपे चढ़ के शाम-सवेरे,
मेरे गीत तेरे होंठो से,
छेड़े जो मुरली धीरे-धीरे,

आया याद, कुछ और बताऊ,
कि बिसरी यादो को चितराउ,

ये प्रीत.......
ये प्रीत वही है, नई जवानी,

तेरे दरश की एक दीवानी,
तेरे मिलन की एक प्यासी,

ना मै मीरा,
ना मै राधा,

योगी हो की भोगी हो,
या वैराग की रोगी हो,
मेरे हो तुम, हे प्रिये...
अब चाहे तुम, जो भी हो,

छलिया हो, छलती हु,
शिर्फ़ तेरे लिए ही गलती हु,
दुनिया तुम्हे जो भी कहे,
मै तो, बस इतना ही कहती हु,

क्या अपनों, क्या गैरो के,
तुम हो राजा चोरो के,

की हा....
की हा मै हु, एक रूप-की-रानी,

तेरे दरश की एक दीवानी
तेरे मिलन की एक प्यासी

ना मै मीरा,
ना मै राधा,
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सु-प्रभात-नमन